नमस्कार दोस्तों हिंदी चर्चा में आपका स्वागत है, आज की अध्यात्म चर्चा में हम आपको बताएँगे की कैसे चार धाम की यात्रा करके मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है,
हमारे हिन्दू धर्म में धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। लोगों की यह मान्यता है कि चार धाम यात्रा करने से किसी भी व्यक्ति के सारे पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि व्यक्ति को अपने जीवन काल में एक बार इन तीर्थ स्थलों की यात्रा करनी चाहिए।
अब हम जानेंगे की चार धाम कौन कौनसे है, यह स्थान देश की चार अलग-अलग दिशाओं में है, बद्रीनाथ उत्तर में, जगन्नाथ पूर्व में, रामेश्वरम दक्षिण में और द्वारका पश्चिम में है।
बद्रीनाथ और रामेश्वरम एक ही अक्षांश और द्वारका और जगन्नाथपुरी एक ही देशांतर पर स्थित हैं। हिंदू पुराणों मेें इन चार स्थानों का अपने आप में ही बहुत महत्व है। यहाॅं के दर्शन करके लोगों के मन में शांति का अनुभव होता है।
बद्रीनाथ धाम :
बद्रीनाथ धाम हिमालय में स्थित पवित्र स्थानों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और माना जाता है कि उन्होंने इस पवित्र स्थान में तपस्या की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को खुले में तपस्या करते देखा तो उन्हें विपरीत मौसम से बचाने के लिए बद्री वृक्ष का रुप धारण कर लिया। इसलिए मंदिर का नाम बद्री नारायण पड़ गया। भगवान बद्री नारायण ने एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में चक्र धारण कर रखा है। दोनों हाथ उनकी गोद में योगमुद्रा में हैं। इस तीर्थस्थल का दर्शन करने का सबसे अच्छा समय मानसून को छोड़कर मई से अक्टूबर तक है।
मन्दिर में अखण्ड दीप जलती है, जो कि ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में से प्रमुख तीर्थस्थल है। प्रत्येक व्यक्ति की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। श्रद्धालु तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ धाम :
बालभद्र, सुभद्रा की पूजा की जाती है! जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा के पुरी में स्थित है। ‘जगन्नाथ’ शब्द ‘जगत नाथ’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘ब्रह्म्माण्ड का भगवान’ होता है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की पूजा की जाती है।
देवताओं की मूर्तियाॅं लकड़ी से बनी हैं। हर बारह साल के बाद इन लकड़ी की मूर्तियों को पवित्र पेड़ों की लकड़ी के साथ समारोह पूर्वक बदला जाता है। हर समारोह में इन मूर्तियों की प्रतिमा तैयार की जाती है। जगन्नाथपुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा के दौरान एक जुलूस निकाला जाता है और इन मूर्तियों को नौ दिन तक गुंडिचा मंदिर में रखा जाता है। जगन्नाथपुरी मंदिर का दर्शन करने का सबसे सर्वोत्तम समय अक्टूबर से अप्रैल होता है।
यहाॅं कई वार्षिक त्यौहार भी आयोजित होते रहते हैं, जिनमें अधिकतर लोग भाग लेते हैं। इनमें सर्वाधिक महत्व का त्यौहार है, रथ यात्रा, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय को, तदनुसार लगभग जून या जुलाई माह में आयोजित होता है। इस उत्सव में तीनों प्रतिमाओं को अति भव्य और विशाल रथों में शृंगारित होकर, यात्रा पर निकालते हैं।
रामेश्वरम धाम :
रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है और यह भगवान शिव को समर्पित है। श्रीलंका से लौटते हुए भगवान राम जी ने यहाॅं भगवान शिव की पूजा की थी, इसीलिए इस जगह का नाम रामेश्वरम पड़ा।
माना जाता है कि रावण को मारने के बाद ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए राम जी ने भगवान शिव की अराधना की और माता सीता के साथ मिलकर शिवलिंग पर पुष्प और जल अर्पण किया। इस पवित्र स्थल में दो शिवलिंग हैं, एक जो भगवान हनुमान हिमालय से लाए थे और दूसरा जो देवी सीता ने रेत से बनाया था।
भक्तों के लिए यह मंदिर दोपहर 1 से 3 छोड़कर, सुबह 5 से रात 9 बजे तक खुला रहता है। मुख्य रूप से पूजा यहाॅं दिन में छह बार की जाती है। इस तीर्थ स्थान का दर्शन करने का सबसे शुभ समय अक्टूबर से अप्रैल तक का है।
रामेश्वरम मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर कला का रूप है। इसका प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊॅंचा है। मंदिर के अंदर सैकड़ों विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है, परंतु पास जाकर बारिकी से देखा जाए तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है। रामेश्वरम केवल धार्मिक महत्व का तीर्थ ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है।
द्वारकापुरी धाम!
जगत मंदिर के तौर पर लोकप्रिय द्वारिकाधीश मंदिर गुजरात के द्वारका में स्थित है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है जिन्हें द्वारकाधीश से संबोधित किया गया है। माना जाता है कि इस मंदिर की यात्रा करने पर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है इसलिए इस मंदिर को मोक्षपुरी भी कहा जाता है। जन्माष्टमी या कृष्ण जन्मोत्सव का त्यौहार यहाॅं भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
चार धाम की व्यवस्था और देख-रेख का काम विभिन्न समितियों द्वारा किया जाता है और सरकार भक्तों की सेवा और मंदिरों की देख-रेख के लिए पर्याप्त उपाय करती है। यह सब तीर्थस्थल रेल, सड़क और हवाई के माध्यम से जुड़े हैं। हर साल हजारों भक्त इन तीर्थ स्थानों पर दर्शन करने के लिए आते है।
कृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया, गोकुल में पले, पर राज उन्होंने द्वारका में ही किया। यहीं बैठकर उन्होंने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांडवों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। बड़े-बड़े राजा यहाॅं आते थे और बहुत-से मामले में भगवान श्री कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है।
कहा जाता है कि श्री कृष्ण के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी भी समुद्र में विलीन हो गई। आज भी यहाॅं उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।
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