नमस्कार दोस्तों हिंदी चर्चा में आपको स्वागत है, आज की अध्यात्म चर्चा में हम आपको बताएँगे श्री राधे-कृष्ण के अमर-प्रेम की पौराणिक कहानी
कान्हा जी वही धुन बजाइए न जो आपने कालिया नाग पर विजय के बाद उस पर नृत्य करते हर बजाई थी मुझे वो धुन ना सच्ची बहुत पसंद है। श्रीराधे ने कृष्णा जी से आग्रह किया।
कृष्णा ने अपनी पसंदीदा धुन मुरली पर बजाना प्रारंभ कर दिया वो धुन जिसमे संपूर्ण ब्रह्माण्ड को मोहित करने की सामर्थ्य है।
यदपि सूर्य देव तो कुछ समय पूर्व ही अस्त हो चुके हैं।लेकिन आकाश में उनकी लालिमा अभी भी शेष है । चिड़ियाँ भी वन को प्रस्थान कर चुकी हैं और अब तो यमुना जी भी कृष्ण की मुरली के लय के साथ-साथ बहने लगीं और कुछ ही समय में वृक्षों के पत्ते, बगिया के फूल, आकाश के तारे और स्वयं श्रीराधे कृष्णा की धुन पर नृत्य करने लगे ।
राधारानी सब कुछ भूल कर कृष्णा के संगीत में आत्मसात हो गयीं वो कान्हा के जादू में पूरी तरह खो गयीं और अपने आप को उन्होंने कृष्णा प्रेम से परिपूर्ण पाया
नाचते-नाचते वो अचानक बेहोश होकर गिर गयीं और जब वे जागीं तो वहां कुछ भी नहीं था ना कोई धुन, ना मुरली, ना वृक्ष, ना तारे और ना ही यमुना नदी वहां पर ना ही कृष्णा ही थे, ना संगीत, ना कोई जादू और ना हे परिपूर्ण प्रेम
राधे ने काले आकाश की और देख कर कहा, “हे कान्हा जी आप मुझे अपने साथ ब्याह कर क्यूँ नहीं ले गए? आखिर क्यूँ? क्या आप मुझसे प्रेम नहीं करते?
कुछ देर के गहरे सन्नाटे के बाद अचानक ही कृष्णा जी राधे के सम्मुख प्रगट हो गएमैंने वादा किया था राधे जब भी मुझे याद करोगी मुझे अपने सामने पाओगी
मुझे अपने सवालों के ज़वाब चाहिए कान्हा जी श्री राधे ने अश्रु भरे नैनो से कहा।
कृष्णा ने राधे के कमल जैसे हाथो को पकड़ा और सालों बाद भी वोही जादुई स्पर्श महसूस किया।
और फिर उन्होंने बोलना प्रारंभ किया “प्रेम करने और विवाह करने में बहुत अंतर है । राधे इन दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं ।
श्रीराधे ने ये वचन पहले कभी नहीं सुने थे वो बहुत आश्चर्य चकित होकर बोली, “ये क्या कहते हो साँवरे ? जिस से हम प्रेम करते हैं।उसी से तो विवाह भी करते हैं ना
कृष्णा ने एक मधुर मुस्कान दी और बोले, “मेरा भरोसा करो राधे प्रेम तो केवल एक मार्ग है एक पथ है त्याग का पथ, आज़ादी का पथ, प्रतीक्षा का पथ, तेज़ धडकनों का पथ, जुदाई का पथ.प्रेम की कोई मंजिल नहीं होती राधे जबकि विवाह की तो शुरुआत ही होती है एक नए मुकाम के साथ विवाह कोई पथ नहीं एक मंजिल है। इसमें त्याग नहीं स्वार्थ है।एक दूसरे के साथ का इसमें आज़ादी नहीं बंधन है। आपस का इसमें इंतज़ार नहीं अधिकार है।इसमें ना तो आँखों का मिलना ही है ना ही दिलो का तेज़ धडकना और फिर इसमें विरह का आनंद भी तो नहीं है राधे
“कभी न ख़त्म होने वाली राह त्याग? इंतज़ार विरह इनमे कैसा आनंद कान्हा जी जब हमारा प्रियतम हमारे साथ ही ना हो श्रीराधे ने बड़ा विस्मित होकर पूंछा ।
कृष्णा फिर शुरू हुए “मै हजारों विवाह कर चूका हूँ राधे लेकिन तुम्हारे वियोग का अहसास उनके साथ के अहसास से कहीं उपर है । हम केवल उन्हें ही याद करते हैं।जो हमारे साथ नहीं हैं।हमें बस उसी का इंतज़ार रहता है।जो हमारे पास नहीं है।हम बस राह तक ही चलते हैं और मंजिल पर जाकर रूक जाते हैं। प्रेम तो इंतज़ार की राह पर जीवित रहता है । राधे विवाह की मंजिल तो उस यात्रा को रोक ही देती है।
श्रीराधे एकटक होकर कान्हा की गहरी आँखों में देखे जा रही थीं।क्यूंकि उन्होंने कभी वियोग के इस पहलू पर विचार तक नहीं किया था। कृष्णा उन्हें प्रेम और जीवन का नया ही दृष्टिकोण दिखा रहे थे।
कृष्णा ने फिर समझाया“खेल का आनंद खेल के समाप्त होने तक ही रहता हैत्योहारों का आनंद उनके इंतज़ार मे ही है। खुद हे सोचो राधे दीवाली का आनंद उसकी तैयारी करने और दीप जलाने में आता है या फिर उसका पूरा होने पर रासलीला की तैयारी और उसके होने के आनंद में हमें जो आनंद आता था।वो उसके पूरा होने के बाद कहाँ आता था? राधे.मैंने तुमसे विवाह ना करके कुछ भी गलत नहीं किया है।मैंने तुमे धोखा नहीं दिया है।मैंने तुमारा दिल भी नहीं तोड़ा है।मैंने तो हमारे प्रेम को हमारी आँखों के इंतज़ार में सदैव के लिए अमर कर दिया है। तुमसे दूर होकर हमेशा के लिए हमारे प्रेम को शाश्वत कर दिया है।
चिड़िया और गायों की आवाज़ ने राधे का ध्यान तोडा यमुना पार से सूरज निकल रहा है। रात्रि बीत चुकी है। कृष्णा अद्दृश्य हो चुके हैं।और अब राधे के हृदय में कोई प्रश्न शेष नहीं।।
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