आज के दिन दशहरा (Dussehra) पर्व का विशेष महत्व होता है, इसे विजय दशमी भी कहते है। इस साल 5 अक्टूबर को यह पर्व मनाया जाएगा। इस दिन को पूरे देश में असत्य पर सत्य की जीत के रूप में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। जगह-जगह मेलों का आयोजन होता है, चारों तरफ एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। जहां एक ओर Dussehra के दिन पूरे देश में रावण दहन किया जाता है, वहीं दूसरे ओर एक ऐसी जगह है जहां लंकापति रावण की पूजा की जाती है।
हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे है, वो उत्तर प्रदेश (UP) के कानपुर जिले में स्थित है। यहां शिव और शक्ति के मंदिर के बीच में ही दशानन का भी मंदिर (Dashanan Mandir) है। शक्ति के भक्त के रूप में यहां रावण की प्रतिमा स्थापित की गई। यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है, जो सिर्फ दशहरे (Dussehra) के दिन ही खुलता है।
यह मंदिर (Dashanan Mandir) करीब डेढ़ सौ साल पुराना है, इसका निर्माण उन्नाव के गुरु प्रसाद शुक्ल ने सन् 1868 में कराया था। इस मंदिर में मां छिन्नमस्ता के साथ ही मां काली, मां तारा , षोडशी, भैरवी, भुनेश्वरी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला महाविद्या के साथ ही दुर्गा जी, जया, विजया, भद्रकाली , अन्नपूर्णा, नारायणी, यशोविद्या, ब्रह्माणी, पार्वती, श्री विद्या, देवसेना, जगतधात्री आदि देवियां विराजमान हैं। इस मंदिर (Dashanan Mandir) परिसर में भगवान शंकर का भी एक शिवालय बना हुआ है। कहा जाता है कि मंदिर की सुरक्षा के लिए महादेव के भक्त लंकेश को इसके मुख्य द्वार पर बिठाया गया है।
सुहागिनें करती है अखंड सौभाग्य की कामना, इस मंदिर (Dashanan Mandir) के कपाट दसमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाते है। जहां पूजा-पाठ होने के बाद सूरज ढलते ही शाम में इसे बंद कर दिया जाता है। लंकेश के दर्शन को यहां दूर- दूर से श्रद्धालु आते हैं। Dussehra के दिन भक्त भगवान शिव (Lord Shiva) का अभिषेक करते हैं और फिर दशानन का अभिषेक और महाआरती की जाती है। सुहागिनें इस मंदिर में तरोई का पुष्प अर्पित कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
इस मन्दिर में दशानन की 10 सिर वाली प्रतिमा विराजमान है। Dussehra के दिन रावण का दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगा जल आदि से अभिषेक कर फूलों से श्रृंगार किया जाता है। सरसों के तेल का दीपक जलाया कर आरोग्यता, बल , बुद्धि का वरदान मांगा जाता है।
दशानन की पूजा ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजनीय बना दिया। ये वही समय था जब भगवान राम ने भाई लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान के साथ नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योंकि इस धरती पर पर रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा न हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है, जिस कारण लोग हर वर्ष दशहरा के दिन Dashanan Mandir में उसकी यहां पूजा करते है।