नमस्कार दोस्तों हिंदी चर्चा में आपका स्वागत है, आज की अध्यात्म चर्चा में हम आपको बताएँगे की भगवान सूर्य नारायण के कितने है पुत्र और पुत्रियाँ के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान, भगवान सूर्य नारायण के परिवार में 6 पुत्र और 3 पुत्रीयाँ थीं
उनके 6 पुत्रों के नाम कुछ इस प्रकार है –
1) वैवस्वत मनु देव
2) यम धर्मराज देव
3) शनि देव
4) भाग्य देव
5) अश्विनी कुमार देव
6) सावर्णि मनु
उनकी 3 पुत्रीयों के नाम कुछ इस प्रकार है –
1) यमुना देवी
2) तापती देवी
3) भद्रा
अब हम इनके पुत्रों के कर्मों के बारे में जानते हैं –
1) वैवस्वत मनु :- ये श्राद्ध देव हैं। ये पितृ लोक के अधिपति हैं। ये ही पितृों को तृप्त करते हैं। इन्हीं ने भूलोक पर सृजन का कार्य किया था।
2) यम धर्मराज :- आमतौर पर लोग इन्हें सिर्फ “यमराज” के नाम से ही जानते हैं पर ये समस्त देवताओं के मध्य “यम धर्मराज” के नाम से पुकारें जाते हैं। इन्हें मृत्यु का देवता भी कहा जाता हैं। जीवन और मृत्यु इन्हीं के नियंत्रण में हैं। ये काल रूप माने जाते हैं।
3) शनि देव :– ये न्याय प्रिय हैं स्वभाव से। ये कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देते हैं और इसीलिए इन्हें “दंडाधिकारी” भी कहा जाता है। ये भगवान सूर्य की दूसरी पत्नी “छाया ” से उत्पन्न हुए थे।
4) भाग्य देव :- इनकी पितृभक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान सूर्य नारायण ने इन्हें वरदान दिया कि ये जिससे चाहे कुछ भी ले सकते हैं और जिनको चाहे कुछ भी दे सकते हैं। ये भगवान सूर्य की पहली पत्नी “संज्ञा” से उत्पन्न हुए थे।
5) अश्विनी कुमार :- ये देवताओं के वैद्य हैं। इनके पास शरीर से जुडी हर समस्या का समाधान है। ये भी भगवान सूर्य की पहली पत्नी “संज्ञा” से उत्पन्न हुए थे।
6) सावर्णि मनु :- ये भगवान सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और चौदह मन्वन्तर में से एक हुए।
अब हम इनकी पुत्रीयों के कर्मों के बारे में जानते हैं –
1) यमुना देवी :- यह नदी शांत नदी है। इस नदी का वेग भी सामान्य है। इस नदी में स्नान करने से यम की प्रताड़ना से मुक्ति मिलती हैं।
2) तापती देवी :- यह नदी यमुना देवी से स्वभाव में विपरीत है। इस नदी का वेग तीव्र है और स्वभाव से प्रचंड है। इस नदी में स्नान करने से पितृगड़ तृप्त होते हैं और शनि के साड़े साती से निजात मिलती हैं। और दोनों ही मोक्षदायनी नदी है।
3) भद्रा :- शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया।किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं। भद्रा देवी श्यामवर्णी हैं जिनके केश सदैव ही खुले रहते हैं नयन ताम्रवर्ण के शरीर पर मुण्ड की माला धारण किए रहती हैं।
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