नमस्कार दोस्तों हिंदी चर्चा में आपका स्वागत है, आज की अध्यात्म चर्चा में हम आपको बताएँगे की तलाक तक करवा देता है वाराणसी का यह नारद घाट – Varanasi Ka Narad Ghaat.
“नार ” शब्द का अर्थ जल है। यह सबको जलदान ,ज्ञानदान करने और तर्पण करने में निपुण होने की वजह से नारद कहलाये। सनकादिक ऋषियों के साथ भी नारद जी का उल्लेख आता है।भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है। नारद अनेक कलाओं में निपुण माने जाते है। यह वेदांताप्रिय , योगनिष्ठ , संगीतशास्त्री , औषधि ज्ञाता , शास्त्रों के आचार्य और भक्ति रस के प्रमुख माने जाते है। 25 हजार श्लोको वाला प्रसिद्ध नारद पुराण भी इन्ही के द्वारा रचा गया है।
पुराणों में देवर्षि नारद को भगवान के गुण गाने में सर्वोतम और अत्याचारी दानवो द्वारा जनता के उत्पीडन का वृतांत भगवान तक पहुचाने वाला त्रैलोक्य पर्यटक माना जाता है।कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते है और इस नाते नारद जी त्रिकालदर्शी है | ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार यह ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न हुए और ऐसा विश्वास किया जाता है कि ब्रह्मा जी से ही इन्होने संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी।
ब्रह्मा के सात मानस पुरुषो में से नारद एक माने गये है और वैष्णव के परमाचार्य तथा मार्गदर्शक है | भागवत के अनुसार नारद अगाध बोध ,सकल रहस्यों के वेत्ता ,वायुवत ,सबके अंदर विचरण करने वाले और आत्मसाक्षी है | नारदपुराण में उन्होंने विष्णु भक्ति की महिमा के साथ साथ मोक्ष , धर्म ,संगीत ,ब्रह्मज्ञान ,प्रायश्चित आदि अनेक विषयों की मीमांसा प्रस्तुत की है | ‘नारद सहिंता’ संगीत का एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है।
ये प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते है | इनकी वीणा भगवन जप महती नाम से विख्यात है | उसमे नारायण नारायण की ध्वनि निकलती रहती है | इनकी गति अव्याहत है | ये ब्रह्म-मुहूर्त में सभी जीवो की गति देखते है और अजर अमर है।
भगवत भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए ही इनका आविर्भाव हुआ है | उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है | देवर्षि नारद धर्म के प्रचार और लोक कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते है | इसी कारण सभी युगों में ,सब लोको में , समस्त विद्याओं में ,समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से प्रवेश रहा है | मात्र देवताओं ने ही नही वरन दानवो ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है | समय समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है | देवर्षि नारद द्वारा रचित नारद भक्ति सूत्र के 84 सूत्रों में भक्ति विषयक विचार दिए गये है।
तलाक करवा देता है नारद घाट पर स्नान?
वाराणसी के गंगा तट पर करीब 84 घाट है | हर घाट की अपनी अलग कहानी और मान्यता है | इन्ही में से एक घाट ऐसा है | जहा शादीशुदा लोग स्नान नही करते क्योंकि यहा स्नान करना यानि अपने लिए मुसीबत बुलाना है | बनारस के इस घाट का निर्माण दतात्रेय स्वामी ने करवाया था | वह घाट परम विष्णु भक्त नारद मुनि के नाम से यानि नारद घाट के नाम से जाना जाता है।
इस घाट के विषय में मान्यता है कि यहा जो भी शादीशुदा जोड़े आकर स्नान करते है उनके बीच मतभेद बढ़ जाता है | उनके पारिवारिक जीवन में आपसी तालमेल की कमी हो जाती है और अलगाव हो जाता है | नारद घाट से पहले इसे कुवाई घाट के नाम से जाना जाता था | 19वी शताब्दी के मध्य में घाट पर नार्देश्वर मन्दिर का निर्माण किया गया जिसके बाद से इस घाट का नाम नारद घाट पड़ गया | मान्यता है कि नार्देश्वर शिव की स्थापना देवर्षि नारद ने की थी।
नारद जी की तपस्या का साक्षी ब्रज चौरासी का नारद घाट
ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग का प्रमुख धार्मिक स्थल है नारद कुंड | मांट तहसील से करीब 25 किमी दूर डडीसरी स्तिथ कुंड देवर्षि नारद जी की तपस्या का साक्षी रहा है | यहा प्रकट हुए भगवान भोले बाबा भी आस्था के केंद्र बने हुए है | पूर्व में यह कुंड पक्का बना हुआ था जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है | मान्यता के अनुसार एक बार श्री कृष्ण भांडीरवन में गाय चरा रहे थे। देखा सामने देवर्षि नारद आ रहे है।
प्रणाम के बाद श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से आने का कारण पूछा तो नारद जी ने खेल का प्रस्ताव रखा | ना नुकर करने के बाद कृष्ण खेलने को तैयार हो गये | खेल का नाम था “आँख मिचौली ” | नारद छिपने की लिए यमुना किनारे चलते हुए भद्रवन पहुचे और वहा से आगे निकल कर इसी कुंड पर पहुचे | उन्होंने देखा की अनेक गौए कुंड में स्नान्र कर रही है तो वह भी धुल-धूसरित होकर गायो के मध्य लेट गये।
श्री कृष्ण ने जब अपनी आँखे खोली तो ध्यान से देखा और उसी कुंड पर पहुच गये।देवर्षि नारद को खोज लिया।कुछ समय के लिए कृष्ण और नारद जी ने इसी कुंड पर निवास किया | मान्यता है कि इस कुंड में जो स्नान करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। बद्रीनाथ तीर्थ में अलकनंदा नदी के तट पर नारदकुंड है जिसने स्नान करने से मनुष्य मात्र पवित्र जीवन की ओर अग्रसर होता है और मान्यताओं के अनुसार मरने के पश्चात मोक्ष ग्रहण करता है।
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